अपने बारे में बात करना सबसे अज़ीब बात होती है और उससे भी ज़्यादा अजीब होता है खुद को जज करना, ये तय करना कि हम कहाँ सही थे कहाँ ग़लत l जितना हम सोच सकते हैं उससे भी कई गुना ज़्यादा घुमाव होते हैं ज़िन्दगी में फिर भी हमें उसका साथ हर हाल में निभाना पड़ता हैl खैर, हम यहाँ बात कर रहे हैं शायरी, गीत ग़ज़ल, और मुक्तकों की जो हमारी ज़िन्दगी का सबसे अहम हिस्सा हैं जिसके लिये कई बार क़समें-वादे सब तोड़े हमने, बात ये है कि कोई प्लान करके लेखक नहीं बनता (लेखक संवेदनाओं की कोख से जन्म लेता है और परिस्थितियों की गोद में पलता -बढ़ता है) शायद हमारे साथ भी यही हुआ है l ख़्याल जेहेन में हलचल करते हैं और हम लिखने बैठ जाते हैंl नहीं पता कि कहाँ जाना है, क्या करना है? क्या खोना या पाना है बस लिखने से सुकून आता है तो इसीलिये लिखते हैं बाक़ी तो अब तक की ज़िन्दगी में कुछ ऐसा हासिल नहीं हुआ है कि आपको बता सकें l
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