शहादरे में भगियों के चौधरी छुट्टन की बेटी का ब्याह था और उसी दिन उसके यहाँ बारात आपी थी, जिस दिन चौधरी रूपराम का काफिला शहादरा आकर पहुँचा, संयोग ऐसा हुआ कि छुट्टन मेहतर के यहाँ बारात तो आ पहुँची थी पर भात नहीं आया था। भात आने वाला था हापुड़ ही से। आम दस्तूर था कि जब तक भात न आ जाता था, लड़की का ब्याह नहीं हो सकता था। भात लाने का हक लड़]की लड़के के मामा का होता है। भात लाने वाला भातई कहलाता है। वह अमीर हो या गरीव, अपनी श्रद्धा के अनुसार भात लाता है। भात यदि लड़की का होता है तो उसमें बिगुए और चूरा हाथी, दाँत का होता है-जो सुहाग का जबर्दस्त चिह होता है। लड़के वाले के भात में भातई मौर और जूले लाता है। यह आम दस्तूर है और भात का तथा भातई का महत्त्व हिन्दुओं को विवाह में इतना महत्वपूर्ण होता है कि लड़की की शादी बाप के बिना तो हो सकती है-पर मामा के बिना नहीं हो सकती।
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