कलाओं में भारतीय आधुनिकता के एक मूर्धन्य सैयद हैदर रजा एक अथक और अनोखे चित्रकार तो थे ही उनकी अन्य कलाओं में भी गहरी दिलचस्पी थी विशेषतः कविता और विचार में वे हिंदी को अपनी मातृभाषा मानते थे और हालाँकि उनका फ्रेंच और अंग्रेजी का ज्ञान और उन पर अधिकार गहरा था, वे, फ़्रांस में साठ वर्ष बिताने के बाद भी, हिंदी में रमे रहे यह आकस्मिक नहीं है कि अपने कला-जीवन के उत्तरार्द्ध में उनके सभी चित्रों के शीर्षक हिंदी में होते थे वे संसार के श्रेष्ठ चित्रकारों में, २०-२१वीं सदियों में, शायद अकेले हैं जिन्होंने अपने सौ से अधिक चित्रों में देवनागरी में संस्कृत, हिंदी और उर्दू कविता में पंक्तियाँ अंकित कीं बरसों तक मैं जब उनके साथ कुछ समय पेरिस में बिताने जाता था तो उनके इसरार पर अपने सात नवप्रकाशित हिंदी कविता की पुस्तकें ले जाता था उनके पुस्तक-संग्रह में, जो अब दिल्ली स्थित रजा अभिलेखागार का एक हिस्सा है, हिंदी कविता का एक बड़ा संग्रह शामिल था रजा की एक चिंता यह भी थी कि हिंदी में कई विषयों में अच्छी पुस्तकों की कमी है विशेषतः कलाओं और विचार आदि को लेकर वे चाहते थे कि हमें कुछ पहल करना चाहिये २०१६ में साढ़े चौरानवे वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु क&
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