26 अगस्त, 1891 को बुलंदशहर के चंदोक में जन्मे आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने 32 उपन्यास, 450 कहानियाँ और अनेक नाटकों का सृजन कर हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया । ऐतिहासिक उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने कई अविस्मरणीय चरित्र हिन्दी साहित्य को प्रदान किए। अपनी समर्थ भाषा शैली के चलते शास्त्रीजी ने अद्भुत लोकप्रियता हासिल की और वह जन साहित्यकार बने। इनकी प्रकाशित रचनाओं की संख्या 186 है, जो अपने ही में एक कीर्तिमान है। आचार्य चतुरसेन मुख्यतः अपने उपन्यासों के लिए चर्चित रहे हैं। इनके प्रमुख उपन्यासों के नाम हैं वैशाली की नगरवधू, वयं रक्षामः, सोमनाथ, मन्दिर की नर्तकी, रक्त की प्यास, सोना और खून (चार भागों में, आलमगीर, सह्यद्रि की चट्टानें, अमर सिंह, हृदय की परख आदि ।
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