यह किताब अलख जगाने और लौ लगाने की एक पहल है ऐसे समाज में जहाँ बदलाव की बातें तो हर मंच और हर सभागार में होती हैं, मगर बदलाव के लिए हकीकत की जमीन पर एक भी कदम बमुश्किल ही रखा जाता है, विभा चुघ के द्वारा 'सखा- एक पहल' नाम से की गई शुरुआत अपने आप में न सिर्फ अहम है बल्कि प्रेरक भी साबित हुई है विभा की इस यात्रा ने उनके अन्दर तो पशु प्रेम और सहजीवन जैसी सकारात्मक धारणाएं विकसित की हीं, उनके साथ काम करने वाली ग्रामीण महिलाओं का जीवन भी संवार दिया हौसले की उड़ान के इस सफर के पन्नों को पलटते हुए पाठकों को ऐसे सूत्र मिलेंगे जो उनकी सोच और नजरिए के दायरे को बढाते हुए उन्हें नई प्रेरणा और नए उत्साह से भर देंगे