"मेरा शहर किसी को सुरमे की वजह से याद आता है तो किसी को ज़री-ज़रदोज़ी या फिर फ़र्नीचर कारीगरों के हुनर के नाते। यों मानसिक चिकित्सालय (लोक में पागलख़ाना) होने की वजह से ठिठोली में लोग इसे राँची और आगरा के बाद तीसरे ठिकाने का दर्जा देकर भी याद रखते आए हैं। भोपाल में मिल गए अकबर अली ने बताया कि पतंगबाज़ी के उनके पहले मुक़ाबले के वक़्त उनके वालिद ने बरेली के रफ़्फ़न उस्ताद का बनाया माँझा देकर कहा था कि उसे तलवार से भी नहीं काटा जा सकता। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से आए स्टीवन विल्किंसन को याद करता हूँ, जो अपने इस अंदाज़े को पक्का करने का इरादा लिए घूम रहे थे कि बहुत नाज़ुक मौक़ों पर यह शहर दंगों से किस तरह बचा रह जाता है। और तभी 1980 के कर्फ़्यू का ज़ाती तजुर्बा और ज़िला जेल में मिल गए क़ादरी साहब का चेहरा ज़ेहन में कौंध जाता है। अमिताभ बच्चन और न ही प्रियंका चोपड़ा की पैदाइश बरेली में हुई, मगर यहाँ एक बड़ी तादाद ऐसे लोगों की भी है, जो इन दोनों पर ही बरेली का ज़बरदस्त हक़ मानते हैं। इस शहर के क्रांतिकारियों और जंगे-ए-आज़ादी के दीवानों का नाम लेकर फ़ख़्र करने वाले याद आते हैं। बहुतों के लिए यह पंडित राधेश्याम कथावाचक और निरंकारदेव सेवक का शहर है
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